Saturday, September 12, 2020

अगर आप भी है सरपंच पद के दावेदार तो आपके लिये है ये ख़ास जरूरी सूचना

सरपंची के रुतबे की आस में अधिक खर्चा करना पड़ सकता है भारी, अगर आप भी है सरपंच पद के दावेदार तो आपके लिये है ये ख़ास जरूरी सूचना ।

झुंझुनूं ( रमेश रामावत ) । सरपंची के रुतबे की आस में अगर आपने अधिक खर्चा किया तो आपके बजट पर पड़ सकता है भारी। जी हाँ सही सुना है गत वर्षों की तरह विकास कार्यों के नाम पर सरकार का खजाना अब मेहरबान नही रहेगा तथा चुनाव खर्चे की भरपाई विकास कार्यो हेतु प्राप्त होने वाली धन राशि से नही कर सकेंगे । इसलिए चुनावी खर्च अपने आर्थिक बजट के अनुसार किया जाये तो भावी सरपंचो के लीये बेहतर रहेगा । प्राप्त जानकारी के अनुसार पंचायत चुनावों की घोषणा के साथ ही प्रत्याशियों ने मतदाताओं को लुभाने के लिये आश्वासनों का पिटारा खोल दिया है तथा मतदाताओं को रुचि व मांग के अनुसार खाने पीने व अन्य तरह की व्यवस्था भी शुरू कर दी है। सरपंच पद पर रह चुके कुछ लोग अगली बार इस आशा में अपना भाग्य आजमाना चाह रहे हैं कि पूर्व वर्षों की तरह विकास कार्यों के नाम पर सरकार का खजाना मेहरवान रहेगा तथा चुनाव खर्चे की भरपाई विकास हेतु प्राप्त होने वाली राशि से कर लेंगे। परन्तु केंद्र तथा राज्य सरकार से ग्राम पंचायतों के खातों में सीधे ही प्राप्त होने वाली राशि मे लगातार कटौती के चलते उनके सपने पूरे होने की संभावना कम ही लगती है या यूं कहें की ना के बराबर है । जिला परिषद में सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार माने तो गत पांच वर्ष पहले हुए चुनावों के बाद अगले चार वर्षों तक राज्य व केंद्रीय अनुदानों से प्रत्येक ग्राम पंचायत को औसत 50 लाख रुपये विकास कार्यो के लिये मिलते थे। इसके अलावा विधायक, सांसद व जिला प्रमुख तथा प्रधान से नजदीकी रखने वाले सरपंच इतनी ही राशि की अतिरिक्त स्वीकृतियां जारी करवा लेते थे। इस प्रकार की राशि से जारी अधिकतर स्वीकृतियां अपने लोगों को व्यक्तिगत फायदा देने वाली तथा निजी मार्जिन वाली ही होती थी। लेकिन अब पांच वर्ष बाद हो रहे चुनावों के समय स्थितियां बदल चुकी है। अब राज्य सरकार से आने वाला अनुदान गत एक साल से बंद है तथा वितीय स्थिति को देखते हुए आगे भी संभावना कम है। केंद्रीय अनुदान की राशि भी गत सालों से आधी कर दी गई है। सांसद कोष आगामी दो साल के लिये स्थगित कर दिया गया है तथा विधायक कोष भी मेडिकल सुविधाओं की ओर मोड़ दिया गया है। नरेगा में भी केंद्रीय सहायता की कमी के चलते सामग्री राशि समय पर नही मिलती है। ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायतों के सामने स्थानीय लोगों पर सेवाकर लगाकर काम चलाऊ आमदनी जुटाने के अलावा कोई विकल्प नही है। इस स्थिति का आकलन किये बिना यदि सरपंच प्रत्याशी अपनी हैसियत से अधिक खर्चा कर रहे हैं तो उनके लिये भविष्य में कर्जदार बने रहने के अलावा कोई रास्ता नही होगा।

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